हनुमान चालीसा - 14
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हनुमान चालीसा की इस नवीं चौपाई में हनुमान जी के व्यक्तित्व के एक महत्वपूर्ण एवं अनुकरणीय गुण की चर्चा करते हैं। वह गुण है परिस्थिति के अनुरूप अपने आप को ढ़ालने और प्रस्तुत करने का। प्रत्येक मनुष्य को विविध परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है और विविध रिश्तों का निर्वहन करना पड़ता है। प्रत्येक परिस्थिति में उचित धर्माचरण के लिए हमको अपने अन्य सब अस्मिताएं और अभिमान किनारे कर के उपस्थित जिम्मेदारी का उचित निर्वहन करना आना चाहिए। कहीं आप पुत्र हैं तो कहीं पिता - तो उस समय उसी रोल को न्याय देना आना चाहिए। हनुमानजी में यह गुण बहुत ही अच्छी तरह विद्यमान था। देखिये एक समय वे सीताजी के सामने अपना सुन्दर बालरूप लेकर प्रस्तुत होते हैं, तो दूसरी तरफ लंका को जलने के लिए विकट रूप धरना कर लेते हैं। यह केवल मूल रूप से निरभिमानी व्यक्ति के लिए ही संभव होता है जो अपने अस्मिता किसी रोल से नहीं बल्कि अपने स्वरुप के ज्ञान से पहचान रखता है। यह मूल रूप से एक ज्ञानी का लक्षण होता है।
